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अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ

प्रकाश माहेश्वरी

प्रकाशक : आर्य बुक डिपो प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6296
आईएसबीएन :81-7063-328-1

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‘अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ’ समाज के इर्द-गिर्द घूमती कहानियों का संग्रह है।

लतखोरीलाल की गफलत


लतखोरीलाल पगला गया। उसकी इच्छा हुई अपना सिर वहीं बिजली के खंबे पर दे मारे। उसे अब भी याद नहीं आ रहा था माँ ने कौन से लालाजी के मरने का बोला था? शहर में तीन लालाजी थे-चक्कीवाले लालाजी, टालवाले लालाजी और हाथीवाले लालाजी। टालवाले लालाजी चल बसे थे। लतखोरीलाल की माँ ने उसे फुसलाते हुए कहा, ''बेटा, तेरे पिताजी बीमार हैं, शवयात्रा में तू चला जा।''

लतखोरीलाल उस समय फिल्म देखने जा रहा था। उसने सुनते ही साफ़ इंकार कर दिया, ''माँ मैं एक 'बेहद जरूरी' काम से जा रहा हूँ। तुम पिताजी को भेज दो।''

''तेरा दिमाग ठीक है?'' माँ की त्यौरियाँ चढ़ गईं, ''वे बुखार में तप रहे हैं और तू...''

''ठीक है, तो मैं शाम को चला जाऊँगा।''

''शाम को जाकर क्या करेगा? शवयात्रा तो अभी है। अभी नहीं गया, तो उनके घरवालों को बहुत बुरा लगेगा।''

''तुम भी गजब करती हो, माँ।'' लतखोरीलाल ने झल्लाते हुए माँ को पूरा, ''इतनी भीड़ में उनके घरवालों को क्या पता चलेगा? वे लालाजी की लाश से चिपट कर रोएँगे या आते-जाते लोगों को घूरेंगे?''

उसके इस ऊटपटाँग उत्तर को सुन माँ अपना आपा खो बैठीं। वह लतखोरीलाल को जोर-जोर से डाँटने लगीं। पास के कमरे में सब सुन रहे पिताजी ने कराहते हुए आवाज़ लगाई, ''अरे तुम भी किस बावले को भेज रही हो! दिन-भर सिनेमा, टी.वी...के सपने देखता है। वहाँ जाकर कुछ उल्टा-सुल्टा बोल बैठा तो?''

''अच्छा!'' सुनते ही लतखोरी को ताव आ गया। फिल्में देखता हूँ तो क्या इतनी भी समझ नहीं, ऐसे समय कैसे डॉयलाग मारे जाते हैं? उसने जूते पहने और बाहर निकल गया। चौराहे पर टिल्लू बेसब्री से उसका इंतजार कर रहा था। लतखोरी के आते ही वह भन्नाया, ''कितनी देर कर दी? फिल्म शुरू हो जाएगी?''

''फिल्म को मार गोली। पहले एक शवयात्रा में चलते हैं...'' और उसने सब कह सुनाया।

''अच्छा, यह बात है?'' सुनकर टिल्लू को भी ताव आ गया, ''अब तो लतखोरी, मरने वाले के घर जाकर ऐसा रोएँगे कि उसके घरवाले भी क्या रोएँगे? बस, फटाफट बतला दे किसके घर जाकर रोना है?''

''लालाजी के।''

''कौन से लालाजी? टालवाले, चक्कीवाले या हाथीवाले?''

''अँई?'' सुनते ही लतखोरीलाल कान खुजलाने लगा। उसे याद ही नहीं आ रहा था, माँ ने कौन से लालाजी के मरने का बोला था।

''अजीब घनचक्कर है?'' टिल्लू ने भन्नाकर उसको घूरा, ''माँ ने जब बतलाया, ध्यान से सुना क्यों नहीं?''

''यार टिल्लू!'' वह मूर्खों की तरह उसे ताकने लगा, ''दरअसल, मैं सिचुएशन का गीत गा रहा था-छोड़ गए लालाजी, ललाईन को अकेला छोड़ गए...''

''खैर, कोई बात नहीं...'' उसे 'क्रौन बनेगा करोड़पति' की याद आ गई, ''अपन पहली 'लाइफ़ लाइन' इस्तेमाल करते हैं, फ़ोन ए फ्रैंड! घर फ़ोन लगाकर पूछते हैं।''

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    अनुक्रम

  1. पापा, आओ !
  2. आव नहीं? आदर नहीं...
  3. गुरु-दक्षिणा
  4. लतखोरीलाल की गफलत
  5. कर्मयोगी
  6. कालिख
  7. मैं पात-पात...
  8. मेरी परमानेंट नायिका
  9. प्रतिहिंसा
  10. अनोखा अंदाज़
  11. अंत का आरंभ
  12. लतखोरीलाल की उधारी

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